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ग़ज़ल

(मुहम्मद अलवी अहमदाबाद के रहनेवाले हैं. उनकी शायरी सरल भाषा में दृश्य काव्य का अद्भुत नमूना है . अपनी विशिष्ठ शैली में कुदरत से गुफ्तगू करती अपनी शायरी के कारण वे जदीद दौर के बड़े और अहम् शायरों में गिने  जाते हैं.)  

अजब नहीं कि फिर एक बार मैं बदल जाऊं.
ज़मीं से दूर कहीं और  ही निकल जाऊं.

पुराने वक़्त का सिक्का हूं मुझको फेंक न दे 
बुरे दिनों में ये मुमकिन है मैं भी चल जाऊं.

मुझे नहीं तो किसी और को तो काटेगा
ये सांप है तो इसे मार कर निकल जाऊं.

न काम आएगा ये गोश्त का बदन अलवी 
मशीनी दौर है लोहे में क्यों न dhal जाऊं.

----मुहम्मद अलवी  

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