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(क़तील शिफाई पाकिस्तान के रहने वाले उर्दू के मशहूर शायर हैं.)

ये मोजेज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे.
कि संग तुझ पे गिरे और चोट आये मुझे.

मैं अपने पांव तले रौंदता हूं साये को 
बदन मेरा ही सही दोपहर न पाए मुझे.

ब-रंगे-ऊद मिलेगी उसे मेरी खुशबू
वो जब भी चाहे बड़े शौक़ से जलाये मुझे.

मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूं
बरहना शह्र में कोई नज़र न आये मुझे.

वही तो सबसे ज्यादा है नुक्ताचीं मेरा
जो मुस्कुरा के हमेशा गले लगाये मुझे.

मैं अपने दिल से निकलूं खयाल किस-किसका
जो तू नहीं तो कोई और याद आये मुझे.

जमाना दर्द के सहरा तक आज ले आया
गुजर कर तेरी जुल्फों के साये-साये मुझे.

वो मेरा दोस्त है सारे जहां को है मालूम
दगा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे.

वो मेहरबां है तो इक़रार क्यों नहीं करता 
वो बदगुमां है तो सौ बार आजमाए मुझे.

मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूं 'क़तील'
गमे-हयात से कह दो खरीद लाये मुझे.

-----क़तील शिफाई 

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