जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है.
मगर वो आज भी बरहम नहीं है.
बहुत मुश्किल है दुनिया का सवंरना
तेरी जुल्फों का पेंचो-ख़म नहीं है.
बहुत कुछ और भी है इस जहां में
ये दुनिया महज ग़म ही ग़म नहीं है.
तकाजे क्यूं करूं पैहम न साक़ी
किसे यां फिकरे-बेशो-कम नहीं है.
मेरी बरबादियों का हमनशीनो
तुम्हें क्या खुद मुझे भी ग़म नहीं है.
अभी बज्मे-तरब से क्या उठूं मैं
अभी तो आँख भी पुरनम नहीं है.
'मजाज़' एक बादाकश तो है यकीनन
जो हम सुनते थे वो आलम नहीं है.
------मजाज़ लखनवी
1 comments:
bahut hi khoobsoorat aur shandaar
mzaz ki shayri mere dil ki dhadkon se jyada krib hai....bhot khub
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