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जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है

जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है.
मगर वो आज भी बरहम नहीं है.

बहुत मुश्किल है दुनिया का सवंरना 
तेरी जुल्फों का पेंचो-ख़म नहीं है.

बहुत कुछ और भी है इस जहां में 
ये दुनिया महज ग़म ही ग़म  नहीं है.

तकाजे क्यूं करूं पैहम न साक़ी
किसे यां फिकरे-बेशो-कम नहीं है.

मेरी बरबादियों का हमनशीनो
तुम्हें क्या खुद मुझे भी ग़म नहीं है.

अभी बज्मे-तरब से क्या उठूं मैं 
अभी तो आँख भी पुरनम नहीं है.

'मजाज़' एक बादाकश तो है यकीनन
जो हम सुनते थे वो आलम नहीं है.

------मजाज़ लखनवी 

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1 comments:

ashokkhachar56@gmail.com said...

bahut hi khoobsoorat aur shandaar
mzaz ki shayri mere dil ki dhadkon se jyada krib hai....bhot khub

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